इसमें कोई शक नहीं है कि पुनर्जन्म का मुद्दा तिब्बत की ऐतिहासिक स्थिति के सवाल और अतीत में दलाई लामा, जो कि 17वीं शताब्दी से ही तिब्बती बौद्धधर्म का सर्वोच्च पद रहा है, की नियुक्ति पर किसका कंट्रोल था और भविष्य में किसका रहेगा, से जुङा हुआ है। यह एक ऐसा धार्मिक मुद्दा है, जो (जैसा कि समझा जाता है) चीन-तिब्बत मतभेद के चारों तरफ़ दांव पर लगा हुआ है, सिर्फ़ ऐतिहासिक प्रतिनिधित्व के मामले में ही नहीं, बल्कि भविष्य के परिणामों के मामले में भी. इसलिए, इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है कि चारों तरफ़ भारी कोलाहल है।
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